श्यामसुंदर भारती |
गजल री उपमा भांत-भांत रा फूलां रै गुलदस्ते सूं दिरीजै। जितरा शेर, उतरा ई विषय। पण रूप एक। आ ई तो खासियत है गजल री अर गजलकार री। इण दीठ सांवर जी जिण विषयां माथै शेर कैया है, वां री विगत खासी लम्बी है। आं में प्रभात, सांझ, प्रकति, रुतां, बायरौ, बगत, मन, मनगत, मिनख रौ वैवार, जग री रीत, हेत, खेत, रेत, रुंख अर भूख सूं ले नै मिनख जीवण रै झीणै सूं झीणो पख वां री दीठ सूं बारै नीं रैयौ है। पण शेरां रा इतरा रंग होता थकां ई वां री सोच रो केन्द्रीय सुर मिनख जीवण री अबखायां रै खिलाफ मिनख रौ संघर्ष सिरै है। अर्नेस्ट हेमिंग्वे रै ‘सागर अर मनुष्य’ रौ बुढो थपेड़ा मारते अथाह समंदर रै खिलाफ जिण जीवट सूं आपरी छोटी-सी किस्ती नै मुट्ठी भर सगती रै पाण आथड़ै, उण रै मुकाबलै सांवरजी रौ ‘एकलौ आदमी’ ई कम हिम्मतवाळौ कोनी-
टूटी पतवार अर ऐकलौ आदमी
सांवर जी आं गजलां नै किण रूप में सांमी लावणी चावता, कैय नीं सकां पण आज जिण रुप में ऐ आंखियां आगै है, आं नै भण’र वां री दीठ, वां रौ जुगबोध, शेर कैवण री वां री निजू आंट (सलाहियत) परतख होवै। आज तक सांवर जी री पैछाण एक धारदार कहाणीकार रै रूप में चावी अर ठावी रैई है। पण वां रौ कवि रूप अर खासकर ऐ गजलां भणियां पछै कैय सकां के वै आप री बात केवण खातर किणी एक विधा रा मोहताज नीं रैया। म्हैं पूछूं के-
धरती पोढ भायला
अभौ ओढ भायला
ऐड़ा जीवता शेर कैवणियौ कदै ई मर सकै?
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