सांवर दइया री कहाणियां री सै सूं बड़ी खूबी है- बंतळ। छोटा-छोटा वाक्यां री बंतळ अर उण सूं जुड़्यां काम कहाणी रै मरम नै तो तीखौ करै ई, बंतळ रा संकेत चरित्रां रै पोत नै ई उधाड़ै। फगत बंतळ रै मारफत ई चौफेर रै पूरै चरित्रां नै उधेड़’र कहाणी में जीव फूंकण वाळौ सांवर दइया जिसौ दूजौ कोई कथाकार आज राजस्थानी कहाणीकारां में को दीसै नीं।
-रामेश्वरदयाल श्रीमाळी
सांवर दइया ने अध्यापकों की पीड़ाएं, कुंठाएं, सुख-दुख को लेकर जो कहानियां लिखी वो ऐसा इतिहास है जो इतिहास में नहीं लिखा जाता।
-यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’
कहाणी ‘गळी जिसी गळी’ वांची। घणी सांतरी लागी। राजस्थानी में इसी कहाणियां कम वांचण नैं मिळी।
-डॉ. नृसिंह राजपुरोहित
सांवरजी और मैं 1972-73 के बीच आपसी खतोकिताबत, ‘हरावळ’ में छप रही उनकी कहानियां मुझे छू रही थी। महज इसलिए नहीं कि वे राजस्थानी के लिए नई थीं बल्कि उन दिनों वे राजस्थानी में होकर हिंदी के लिए भी नई थी।... वे मेरे लिए समवयस्क लेखकों का सदैव एक जीवित संदर्भ रहेंगे।
-तेजसिंह जोधा
राजस्थानी कहानी साहित्य में सांवर दइया का योगदान अविस्मरणीय है। वे प्रतिष्ठित कथाकार थे। राजस्थानी में नयी कहानियों की शुरुआत उन्हीं की कहानियों से हुई।
-डॉ. गोरधनसिंह शेखावत
सांवर दइया सूं म्हैं घणौ प्रभावित हौ। वो चोखी कहाणियां लिखी।
-सत्यप्रकाश जोशी
... सांच मानज्यौ म्हैं राजस्थानी में दोय कथाकारां नै घणा ऊंचा’र सावळ मानूं- एक आपांरा कथाकार श्री विजयदान देथा अर दूजा थैं (सांवर दइया) हौ।
-चंद्रप्रकाश देवळ
सांवर दइया के कृतित्व ने राजस्थानी की सृजन सामर्थ्य को प्रमाणित किया है। लोक चेतना को नव चिंतन से समन्वित कर राजस्थानी साहित्य को भारतीय वाङ्मय की मुख्यधारा में सहज, सार्थक गति से प्रवाहित किया है।
-रधुराजसिंह हाड़ा
कवि रै रूप मांय सांवर दइया बाबत न्यारा-न्यारा लेखकीय मत
‘हुवै रंग हजार’ री कवितावां पढ़’र म्हारो जीव बध्यो है।
-कन्हैयालाल सेठिया
‘हुवै रंग हजार’ की कविताएं पढ मन घणो प्रसन्न हुयो- घणी प्रसन्नता तो इण बात री हुई कै मायड़ भाषा राजस्थानी में इण भांत री चोखी नै सांतरा विचारां री कवितावां की जा सकै है जका कै देस री दूजी भाषावां री होड कर सकै।
-रेंवतदान चारण
सांवर दइया राजस्थानी के प्रौढ़ और परिपक्व कवि थे। ‘हुवै रंग हजार’ में संगृहीत उनकी कविताएं न केवल अपने संवेदन की सूक्ष्मता और जीवन के विविध क्षेत्रों का स्पर्श करने वाली कवि की समग्र विचार दृष्टि के कारण ही महत्त्वपूर्ण है, भावाभिव्यंजना की दृष्टि से भी उसने उपलब्धि के नए शिखरों का स्पर्श किया है। उनकी भाषा में स्तरीयता और एकरूपता का ही निर्वाह नहीं हुआ है, वह अपनी सटीक व्यंजना और आंतरिक लय के कारण भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है।
-डॉ. मूलचंद सेठिया
म्हैं समझूं सांवर दइया री कविता राजस्थानी कवियां री नुवीं ओळ सारूं ‘प्रकाश स्तम्भ’ रौ काम करैला।
-पारस अरोड़ा
सांवर ने अपने कवि को बड़े जतन से संवारा। वह कथाकार था पर उसके कवि का कद उसकी सृजन विधाओं में ऊंचा था। प्रखर और प्रांजल। यह बात कहकर मैं मेरे शब्दों की साक्षी में सांवर दइया के शब्द-संसार को आत्मसात् कर रहा हूं।
-ओंकारश्री
‘हुवै रंग हजार’ री घण्खरी कवितावां सांवरजी रै कवि री सामाजिक चिंतावां रै सागै-सागै कवि-कर्म री आपरी चितावां अर सरोकारां री सांवठी बानगी है। किणी भी भासा रै काव्य मांय ऐड़ो निगै आवणो घणो सुभ हुया करै.....
-मालचंद तिवाड़ी
आधुनिक राजस्थानी कविता में नुवां प्रयोग न केवल कथ्य बल्कि शिल्प अर संरचना रै स्तर माथै ई हुया है अर नुवीं काव्य-विधावां सांम्ही आवण लागी। सांवर दइया रो नांव इण खेतर में इणी’ज वास्तै महताऊ है कै उणां राजस्थानी गजल नै नुंवा तेवर देवण रै साथै ई साथै जापानी छंद में ई घणी रचनावां करी अर औ राजस्थानी कविता रै तांई उणा रो pioneering Work कैयो जा सकै।
-कुंदन माली
सांवर दइया के कृतित्व ने राजस्थानी की सृजन सामर्थ्य को प्रमाणित किया है। लोक चेतना को नव चिंतन से समन्वित कर राजस्थानी साहित्य को भारतीय वाङ्मय की मुख्यधारा में सहज, सार्थक गति से प्रवाहित किया है।
-रधुराजसिंह हाड़ा
व्यंग्यकार रै रूप मांय सांवर दइया बाबत न्यारा-न्यारा लेखकीय मत
सांवर दइया में व्यंग्य करण रौ आछौ माद्दौ है। दुशालै में लपेट’र मारणौ हरेक रै बस रो रोग कोनी। आ कोई बिड़दावण री मुखदेखी तारीफ कोनी। हकीकत लागी जिकौ लिखूं।... म्हनै आज इसौ चुभतौ अर सटीक व्यंग्य लिखणियौ राजस्थानी में दूजौ कोई निगै नीं आवै।
-डॉ. नृसिंह राजपुरोहित
वे(सांवर दइया) राजस्थानी के प्ररिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी साहित्यिक देन बहुत मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण है। उनकी निर्भिकता और बिना लाग लपेट के बात कहने का ढंग सभी को पसंद आता था।..... बहुत कम उम्र में उन्होंने बहुत बड़ा काम किया।
-डॉ. हीरालाल माहेश्वरी
....आप (सांवर दइया) रा व्यंग्य गद्य और पद्य दोनां में लाजबाब हुवै। आप राजस्थानी रा ‘परसाई’ हौ।
-प्रो. गणपति चंद्र भंडारी
व्यंग्य नै विद्या रै रूप में थापित करणियां सांवर दइया ई है, क्यूं कै आं सूं पैला इण विधा नै गंभीरता सूं लेवणिया कमती ई निगै आवै। आं रै व्यंग्य में परसाई जैड़ी कथात्मकता सहजता है, बठैई त्यागी जैड़ी बौद्धिकता अर कलात्मकता रो सांतरो मेळ मिलै। डॉ. धनंजय वर्मा व्यंग्य-विनोद नै हरेक भाषा री जीवनशक्ति अर पौरूष रो लक्षण मानै। इण रूप में निर्विवादित रूप सूं कैय सकां कै व्यंग्यकार-रूप सांवठी पैचाण बणावणियां सांवरजी राजस्थानी भाषा री जीवनशक्ति अर गीरबै नै सवायो करणवाळी व्यंग्य रचनावां रि सिरजण कर्यो।
-बुलाकी शर्मा
सांवरजी लेखनी सूं गद्य साहित्य में कालजयी रचनावां रो सृजन कर्यो।
-रतन शाह
छोटा-छोटा वाक्य, संवाद री प्रधानता अर बिचाळै-बिचाळै व्यंग्य रा तीखा छांटां सांवर दइया री रचनावां री उल्लेखजोग विशेषतावां मानी जा सकै।
-डॉ. किरण नाहटा
आप (सांवर दइया) की लेखनी से तलख तीखे तेवरों के साथ निकले व्यंग्य के तीर अपने लक्ष्य को बखूबी साधते हैं। यहां यह अंकन भी अतिशोयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि राजस्थानी साहित्य में स्वतन्त्र व्यंग्य की शुरुआत दइयाजी की ही देन है।
शंकरसिंह राजपुरोहित
मरुधरा रा लाडला कवि-कथाकार श्री सांवर दइया रो जलम 10 अक्टूबर, 1948 नै बीकानेर में हुयो। हिंदी में एम.ए. अर गुजराती में डेकन कॉलेज, पूना सूं डिप्लोमा प्राप्त सांवरजी शिक्षा विभाग में अनेक पदां माथै रैया अर इण विभाग री पत्रिकावां ‘शिविरा’ अर ‘नया शिक्षक’ रै संपादन सूं जुड़्या रैय’र सरावणजोग काम कर्यो। आपरा दस कविता संग्रै, पांच कहाणी संग्रै अर एक व्यंग्य संग्रै छप्योड़ा है। आपरी केई रचनावां रा बीजी भारतीय भाषावां में उल्था ई छप्या। केंद्रीय साहित्य अकादेमी सूं दोय पोथ्यां-"एक दुनिया मेरी भी" अर "स्टेच्यू" छपी। राजस्थानी कहाणी में उल्लेखजोग संपादित कहाणी संग्रह "उकरास" आपरै संपदान में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी सूं छप्यो अर विश्वविद्यालय री पाठ्यपुस्तक रै रूप मांय बरसां सूं पढाइजै। केंद्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली सूं 1985 में "एक दुनिया म्हारी" कथा-संग्रै सारू आपनै सर्वोच्च पुरस्कार मिल्यो। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर; राजस्थान साहित्य अकादेमी, उदयपुर; मारवाड़ी सम्मेलन, मुम्बई आद केई बीजा पुरस्कार अर मान सम्मान मिल्योड़ा। 30 जुलाई, 1992 नै निधन।
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